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महव-ए-नज़्ज़ारा-ए-हैरत है हवा पहली बार | शाही शायरी
mahw-e-nazzara-e-hairat hai hawa pahli bar

ग़ज़ल

महव-ए-नज़्ज़ारा-ए-हैरत है हवा पहली बार

महताब हैदर नक़वी

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महव-ए-नज़्ज़ारा-ए-हैरत है हवा पहली बार
मुझ पे दरवाज़ा-ए-महताब खुला पहली बार

हिज्र की शब से बहुत दूर सर-ए-मतला-ए-शौक़
अब के तन्हाई में वो मुझ से मिला पहली बार

अब न एहसान करें मुझ पे ये काली रातें
इस अंधेरे में जला कोई दिया पहली बार

अब धनक-रंग बहुत साफ़ नज़र आते हैं
अपने आईने में आई है जिला पहली बार

इक हक़ीक़त ने किया ख़्वाब सा जादू मुझ पर
और मैं देर तलक सोता रहा पहली बार

और फिर दश्त-ए-जुनूँ मुझ को बहुत याद आया
चाक-ए-दामाँ जो अभी मैं ने सिया पहली बार