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महसूस कर रहा हूँ तुझे ख़ुशबुओं से मैं | शाही शायरी
mahsus kar raha hun tujhe KHushbuon se main

ग़ज़ल

महसूस कर रहा हूँ तुझे ख़ुशबुओं से मैं

अहमद ज़िया

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महसूस कर रहा हूँ तुझे ख़ुशबुओं से मैं
आवाज़ दे रहा हूँ बड़े फ़ासलों से मैं

मुझ को मिरे वजूद से कोई निकाल दे
तंग आ चुका हूँ रोज़ के इन हादसों से मैं

ये और बात तुझ को नहीं पा सका मगर
आया तिरे क़रीब कई रास्तों से मैं

तय हो सकेगा मुझ से न ये ज़ात का सफ़र
मानूस हो न पाऊँगा तन्हाइयों से मैं

है मेरा चेहरा सैकड़ों चेहरों का आईना
बेज़ार हो गया हूँ तमाशाइयों से मैं