महसूस हो रहा है कि दुनिया सिमट गई
मेरी पसंद कितने ही ख़ानों में बट गई
तन्हाइयों की बर्फ़ पिघलती नहीं हनूज़
वादों के ए'तिबार की भी धूप छट गई
हम ने वफ़ा निभाई बड़ी तमकनत के साथ
अपने ही दम पे ज़िंदा रहे उम्र कट गई
दौर-ए-ख़िरद वो दौर-ए-ख़िरद है कि क्या कहें
क़ीमत बढ़ी है फ़न की मगर क़द्र घट गई
'सरवत' हर एक रुत में लपेटे रही जिसे
वो ना-मुराद आस की चादर भी फट गई

ग़ज़ल
महसूस हो रहा है कि दुनिया सिमट गई
नूर जहाँ सरवत