महशरिस्तान-ए-जुनूँ में दिल-ए-नाकाम आया
नाला हंगामा-नवाज़ी पे सर-ए-शाम आया
मेहर अज़-रू-ए-मुअल्ला जो लब-ए-बाम आया
देखिए देखिए अब धूप गई घाम आया
बर्क़ की शो'ला-नवाज़ी सबब-ए-तूल-ए-हयात
फ़ितरत-ए-मौत तिरी ज़ीस्त का हंगाम आया
मुंतशिर हो गए जिस वक़्त सब अज्ज़ा-ए-हयात
क़तरा दरिया में ब-अंदाज़ा-ए-अंजाम आया
तौसन-ए-उम्र-ए-गुरेज़ाँ की सुबुक-रफ़्तारी
काम देती नहीं जब मौत का पैग़ाम आया
मर्कज़-ए-रूह ये है कश्मकश-ए-मौत-ओ-हयात
फिर भी वारफ़्तगी-ए-शौक़ पे इल्ज़ाम आया
मैं वो आसूदा-ए-सोज़-ए-ख़लिश-ए-मिज़्गाँ हूँ
जिस को राह-ए-तलब-ए-शौक़ में आराम आया
तूर से इक कशिश-मश्क़ थी सूरत-गर-ए-शौक़
तुझ पर ऐ वादी-ए-ऐमन अबस इल्ज़ाम आया
सर्द-मेहरी से किसी को जो हुई हाजत-ए-ग़ुस्ल
गर्म-जोशी को बग़ल में लिए हम्माम आया
ज़ुल्फ़ के जाल में मा'शूक़ का सर है ख़ुद भी
क़ैदियों मुज़्दा कि सय्याद तह-ए-दाम आया
क़ब्र से रास्ता सीधा है ख़ुदा के घर का
जो उधर जाने लगा बाँध के एहराम आया
है अगर नाम इसी का अदबियात-ए-लतीफ़
तो ज़रीफ़' इस को कहें क्या जिसे ये काम आया
ग़ज़ल
महशरिस्तान-ए-जुनूँ में दिल-ए-नाकाम आया
ज़रीफ़ लखनवी