महका है गुल-ए-ख़ून-ए-वफ़ा जानिए क्या हो
जलती है कोई शम-ए-हिना जानिए क्या हो
बंदिश है निगाहों पे दिल-ओ-जाँ पे हैं पहरे
ता'बीर तिरी ख़्वाब-ए-वफ़ा जानिए क्या हो
मुद्दत से किसी ज़ुल्फ़ की ख़ुशबू नहीं आती
मसरूफ़ियत-ए-दस्त-ए-सबा जानिए क्या हो
शो'ला सा लपकता है कोई रौज़न-ए-दर से
ख़ंदाँ है फिर इक बिन्त-ए-हया जानिए क्या हो
ठहरी है सबा गर्दिश-ए-अफ़्लाक रुकी है
कसता है कोई बंद-ए-क़बा जानिए क्या हो
बाक़ी है अभी तल्ख़ी-ए-ज़हराब लबों पर
है फिर लब-ए-साक़ी पे सला जानिए क्या हो
ग़ज़ल
महका है गुल-ए-ख़ून-ए-वफ़ा जानिए क्या हो
शाहिद अख़्तर