महफ़िलें लुट गईं जज़्बात ने दम तोड़ दिया
साज़ ख़ामोश हैं नग़्मात ने दम तोड़ दिया
हर मसर्रत ग़म-ए-दीरोज़ का उन्वान बनी
वक़्त की गोद में लम्हात ने दम तोड़ दिया
अन-गिनत महफ़िलें महरूम-ए-चराग़ाँ हैं अभी
कौन कहता है कि ज़ुल्मात ने दम तोड़ दिया
आज फिर बुझ गए जल जल के उमीदों के चराग़
आज फिर तारों भरी रात ने दम तोड़ दिया
जिन से अफ़्साना-ए-हस्ती में तसलसुल था कभी
उन मोहब्बत की रिवायात ने दम तोड़ दिया
झिलमिलाते हुए अश्कों की लड़ी टूट गई
जगमगाती हुई बरसात ने दम तोड़ दिया
हाए आदाब-ए-मोहब्बत के तक़ाज़े 'साग़र'
लब हिले और शिकायात ने दम तोड़ दिया
ग़ज़ल
महफ़िलें लुट गईं जज़्बात ने दम तोड़ दिया
साग़र सिद्दीक़ी