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महफ़िल में अब के आओ तो ऐसी ख़ता न हो | शाही शायरी
mahfil mein ab ke aao to aisi KHata na ho

ग़ज़ल

महफ़िल में अब के आओ तो ऐसी ख़ता न हो

फ़रहत एहसास

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महफ़िल में अब के आओ तो ऐसी ख़ता न हो
रंग-ए-लिबास रंग-ए-बदन से सिवा न हो

इतना तो रंग पहले फ़ज़ा में कभी न था
उड़ती हुई कहीं कोई उस की क़बा न हो

उलझन सी होने लगती है मेरे चराग़ को
कुछ दिन मुक़ाबले पे जो उस के हवा न हो

सारी अलामतें तो हैं आग़ाज़ इश्क़ की
देखो तो जिस्म-ओ-जाँ में कोई गुल खिला न हो