EN اردو
मह है अगर जू-ए-शीर तुम भी ज़री-पोश हो | शाही शायरी
mah hai agar ju-e-shir tum bhi zari-posh ho

ग़ज़ल

मह है अगर जू-ए-शीर तुम भी ज़री-पोश हो

नज़ीर अकबराबादी

;

मह है अगर जू-ए-शीर तुम भी ज़री-पोश हो
दूध छटी का उसे याद दिलाने चलो

आईना-ए-माह को लाल-ए-लब अपने दिखा
चश्मा-ए-काफ़ूर में आग लगाने चलो

तुम हो मह-ए-चार-दह चार क़दम रख के आज
बद्र-ए-फ़लक-क़द्र की क़द्र घटाने चलो