मगर तुम सीं हुआ है आश्ना दिल
कि हम सीं हो गया है बेवफ़ा दिल
चमन में ओस के क़तरों की मानिंद
पड़े हैं तुझ गली में जा-ब-जा दिल
जो ग़म गुज़रा है मुझ पर आशिक़ी में
सो मैं ही जानता हूँ या मिरा दिल
हमारा भी कहाता था कभी ये
सजन तुम जान लो ये है मिरा दिल
कहो अब क्या करूँ दाना कि जब यूँ
बिरह के भाड़ में जा कर पड़ा दिल
कहाँ ख़ातिर में लावे 'आबरू' कूँ
हुआ उस मीरज़ा का आश्ना दिल
ग़ज़ल
मगर तुम सीं हुआ है आश्ना दिल
आबरू शाह मुबारक