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मगर जो दिल में था वो कह गई है | शाही शायरी
magar jo dil mein tha wo kah gai hai

ग़ज़ल

मगर जो दिल में था वो कह गई है

जावेद नासिर

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मगर जो दिल में था वो कह गई है
सदा ख़ामोश हो के रह गई है

अभी तक ज़िक्र है लहरों में उस का
वो मौज-ए-ख़ैर थी जो बह गई है

निछावर कर रहे थे हम ग़मों को
मगर दीवार-ए-गिर्या ढह गई है

ख़ुदा आबाद रक्खे ज़िंदगी को
हमारी ख़ामुशी को सह गई है