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मदहोश कहीं ग़म की शराबों में मिलेंगे | शाही शायरी
madhosh kahin gham ki sharabon mein milenge

ग़ज़ल

मदहोश कहीं ग़म की शराबों में मिलेंगे

मेहवर नूरी

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मदहोश कहीं ग़म की शराबों में मिलेंगे
फ़नकार हैं हम ख़ाना-ख़राबों में मिलेंगे

ना-क़द्री-ए-अर्बाब-ए-हुनर आज है लेकिन
कल बन के सनद सारी किताबों में मिलेंगे

टकरा के पहाड़ों से पलट आएगी आवाज़
ख़ुद मेरे सवालात जवाबों में मिलेंगे

जो लोग हैं देरीना रिवायात के क़ातिल
तज्दीद-ए-तअल्लुक़ के अज़ाबों में मिलेंगे

नफ़रत के भँवर ने जो डुबोया हमें 'महवर'
अब हम भी मोहब्बत के सराबों में मिलेंगे