मचलते रहते हैं बिस्तर पे ख़्वाब मेरे लिए
उतारे जाते हैं शब भर अज़ाब मेरे लिए
मैं जब सफ़र के इरादे से घर को छोड़ता हूँ
सुलगता रहता है इक आफ़्ताब मेरे लिए
मैं तेरा क़र्ज़ चुकाऊँगा वस्ल की रुत में
तू अपने अश्कों का रखना हिसाब मेरे लिए
रिफ़ाक़तों की शगुफ़्ता बशारतें तेरी
तअल्लुक़ात के सारे अज़ाब मेरे लिए
फिर उस के बाद जो तू चाहे ज़ुल्म कर दुनिया
बस एक हर्फ़-ए-दुआ मुस्तजाब मेरे लिए
फ़ुग़ाँ का शोर मुक़द्दर है हिज्र की शब में
न कोई नग़्मा न चंग ओ रबाब मेरे लिए
ये किस निगाह का एज़ाज़ है कोई बतलाए
किए हैं किस ने ये ग़म इंतिख़ाब मेरे लिए
'नदीम' रिश्तों की हर आँख शब-ज़दा है यहाँ
हर एक चेहरा है जैसे सराब मेरे लिए
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ग़ज़ल
मचलते रहते हैं बिस्तर पे ख़्वाब मेरे लिए
शहबाज़ नदीम ज़ियाई