मायूस ख़ुद-ब-ख़ुद दिल-ए-उम्मीद-वार है
इस गुल में बू ख़िज़ाँ की है रंग-ए-बहार है
तय हो चुकीं शिकस्त-ए-तमन्ना की मंज़िलें
अब इस के बाद गिर्या-ए-बे-इख़्तियार है
उस बेवफ़ा से कर के वफ़ा मर-मिटा 'रज़ा'
इक क़िस्सा-ए-तवील का ये इख़्तिसार है
ग़ज़ल
मायूस ख़ुद-ब-ख़ुद दिल-ए-उम्मीद-वार है
आले रज़ा रज़ा