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मायूस ख़ुद-ब-ख़ुद दिल-ए-उम्मीद-वार है | शाही शायरी
mayus KHud-ba-KHud dil-e-ummid-war hai

ग़ज़ल

मायूस ख़ुद-ब-ख़ुद दिल-ए-उम्मीद-वार है

आले रज़ा रज़ा

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मायूस ख़ुद-ब-ख़ुद दिल-ए-उम्मीद-वार है
इस गुल में बू ख़िज़ाँ की है रंग-ए-बहार है

तय हो चुकीं शिकस्त-ए-तमन्ना की मंज़िलें
अब इस के बाद गिर्या-ए-बे-इख़्तियार है

उस बेवफ़ा से कर के वफ़ा मर-मिटा 'रज़ा'
इक क़िस्सा-ए-तवील का ये इख़्तिसार है