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माया-ए-नाज़-ए-राज़ हैं हम लोग | शाही शायरी
maya-e-naz-e-raaz hain hum log

ग़ज़ल

माया-ए-नाज़-ए-राज़ हैं हम लोग

फ़ानी बदायुनी

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माया-ए-नाज़-ए-राज़ हैं हम लोग
महरम-ए-राज़-ए-नाज़ हैं हम लोग

बज़्म-ए-दिल में दिया न ऐश को बार
साहिब-ए-इम्तियाज़ हैं हम लोग

हम से मिलती है बर्क़-ए-तूर को दाद
वो तबस्सुम-नवाज़ हैं हम लोग

अक़्ल आजिज़ है बे-ख़बर है होश
चश्म-ए-बद-दूर राज़ हैं हम लोग

हश्र-ए-उम्मीद से मुराद हैं हम
गिला-हा-ए-दराज़ हैं हम लोग

तेरी नाज़-आफ़रीनियाँ हैं गवाह
कि सरापा नियाज़ हैं हम लोग

हुस्न बे-जल्वा कुछ सही 'फ़ानी'
जल्वा-ए-जल्वा-साज़ हैं हम लोग