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मअ'रका ही मअ'रका चारों तरफ़ | शाही शायरी
marka hi marka chaaron taraf

ग़ज़ल

मअ'रका ही मअ'रका चारों तरफ़

नदीम फ़ाज़ली

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मअ'रका ही मअ'रका चारों तरफ़
इक हुजूम-ए-कर्बला चारों तरफ़

तोड़ दे इस दाएरे को तोड़ दे
रास्ता है रास्ता चारों तरफ़

मुझ को कैसी ख़ामुशी दरकार थी
और कैसा शोर था चारों तरफ़

वक़्त वह जब मेरे अंदर में न था
कौन था मेरे सिवा चारों तरफ़

उमर भर मक्कार आँखों ने मुझे
वह दिखाया जो न था चारों तरफ़

अच्छे अच्छे जिस की रौ में बह गए
उस ने बाँधी वह हवा चारों तरफ़

हाए ये हम शाइरों की हाए हाए
और मुकर्रर वाह-वा चारों तरफ़