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माँगने से क़ज़ा नहीं मिलती | शाही शायरी
mangne se qaza nahin milti

ग़ज़ल

माँगने से क़ज़ा नहीं मिलती

अरुण कुमार आर्य

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माँगने से क़ज़ा नहीं मिलती
चाहने से वफ़ा नहीं मिलती

रोग ये ला-इलाज है यारो
दर्द-ए-दिल की दवा नहीं मिलती

जाने क़ानून खो गया है कहाँ
मुजरिमों को सज़ा नहीं मिलती

ग़ैर की बद-दुआ' तो मिलती है
दोस्तों की वफ़ा नहीं मिलती

बात दिल की किसे सुनाए 'अरुण'
अब कोई दिलरुबा नहीं मिलती