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माँगे है तिरे मिलने को बे-तरह से दिल आज | शाही शायरी
mange hai tere milne ko be-tarah se dil aaj

ग़ज़ल

माँगे है तिरे मिलने को बे-तरह से दिल आज

क़ाएम चाँदपुरी

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माँगे है तिरे मिलने को बे-तरह से दिल आज
कल क्या है जो मिलना है मिरी जान तू मिल आज

फिर सुब्ह से आशोब-ए-क़यामत है जहाँ में
चेहरे पे तिरे किन ने बनाया है ये तिल आज

ऐ गिर्या तू ख़ातिर से मिरी कीजो न सर्फ़ा
मैं ख़ून-ए-दिल-ए-ख़स्ता किया तुझ पे बहिल आज

चाहे है अगर कल को तिरी नश्व-ओ-नुमा हो
दिल खोल के दाने की तरह ख़ाक में रिल आज

क्या सीना जो तड़फों को निगह की तिरी झेले
इस तीर से रह जाए न फ़ौलाद की सिल आज

या-रब न पड़े अस्ल से अपनी कोई याँ दूर
ये आब था सब जितनी कि देखे है तू गिल आज

'क़ाएम' ये ग़ज़ब कल तो न टूटे था तिरे पर
देखा है कहीं तीं वो बुत-मेहर-गुसिल आज