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माँगे बग़ैर मुझ को अपनी किताब देना | शाही शायरी
mange baghair mujhko apni kitab dena

ग़ज़ल

माँगे बग़ैर मुझ को अपनी किताब देना

केवल कृष्ण रशी

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माँगे बग़ैर मुझ को अपनी किताब देना
उस में छुपा के मेरे ख़त का जवाब देना

देखा उसे तो मुँह से बे-साख़्ता ये निकला
देना जिसे भी यारब ऐसा शबाब देना

मुझ में समा न जाए इस ज़िंदगी की तल्ख़ी
साक़ी शराब देना साक़ी शराब देना

गुज़रे हैं ज़िंदगी में ऐसे भी दिन 'रिशी' पर
ख़ुद ही सवाल करना ख़ुद ही जवाब देना