माँगे बग़ैर मुझ को अपनी किताब देना
उस में छुपा के मेरे ख़त का जवाब देना
देखा उसे तो मुँह से बे-साख़्ता ये निकला
देना जिसे भी यारब ऐसा शबाब देना
मुझ में समा न जाए इस ज़िंदगी की तल्ख़ी
साक़ी शराब देना साक़ी शराब देना
गुज़रे हैं ज़िंदगी में ऐसे भी दिन 'रिशी' पर
ख़ुद ही सवाल करना ख़ुद ही जवाब देना
ग़ज़ल
माँगे बग़ैर मुझ को अपनी किताब देना
केवल कृष्ण रशी