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माल-ओ-मता-ए-दश्त सराबों को दे दिया | शाही शायरी
mal-o-mata-e-dasth sarabon ko de diya

ग़ज़ल

माल-ओ-मता-ए-दश्त सराबों को दे दिया

हसन नईम

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माल-ओ-मता-ए-दश्त सराबों को दे दिया
जो कुछ ज़र-ए-ख़याल था ख़्वाबों को दे दिया

रखने का जो गुहर था उसे दिल में रख लिया
बिकने का था जो माल किताबों को दे दिया

सब्ज़ों को ख़ुश-लिबास बना कर ज़मीन ने
कुछ रश्क का जवाज़ गुलाबों को दे दिया

अपने लहू की बूँद बना कर दम-ए-नशात
इक सोज़-ए-ला-ज़वाल शराबों को दे दिया

आए न जब गिरफ़्त में सैफ़-ओ-क़लम 'नईम'
अपना तमाम कर्ब रबाबों को दे दिया