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माल-ए-दुनिया तलाश करना है | शाही शायरी
mal-e-duniya talash karna hai

ग़ज़ल

माल-ए-दुनिया तलाश करना है

अनीस अब्र

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माल-ए-दुनिया तलाश करना है
या'नी रुत्बा तलाश करना है

आज इंसाँ को तपते सहरा में
बहता दरिया तलाश करना है

तो कुँवारी है कब से ऐ दुनिया
तेरा रिश्ता तलाश करना है

अब चराग़ों की लौ नहीं मंज़ूर
यद-ए-बैज़ा तलाश करना है

दुश्मनी प्यार से भी कुछ अच्छा
दरमियाना तलाश करना है

कर चुके सैर हम समुंदर की
अब किनारा तलाश करना है

मुझ को फिर से किताब-ए-माज़ी में
तेरा चेहरा तलाश करना है

'अब्र' दुनिया को छोड़ जाने का
इक बहाना तलाश करना है