माहताब-ए-वजूद पढ़ते हैं
आ किताब-ए-वजूद पढ़ते हैं
धूप रंगों में ढाल देते हैं
आफ़्ताब-ए-वजूद पढ़ते हैं
तेरी ख़ुशबू को साँस करते हैं
फिर गुलाब-ए-वजूद पढ़ते हैं
इक महक जो बदन जलाती है
उस का बाब-ए-वजूद पढ़ते हैं
कितनी बोझल गुज़रती हैं शामें
तेरा ख़्वाब-ए-वजूद पढ़ते हैं
तेरी हैरानी जान लें पहले
फिर सराब-ए-वजूद पढ़ते हैं
कोई अंदर की बात करते हैं
इज़्तिराब-ए-वजूद पढ़ते हैं
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ग़ज़ल
माहताब-ए-वजूद पढ़ते हैं
नाहीद विर्क