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मआनी लफ़्ज़ों के पीरी में कुछ शबाब में कुछ | शाही शायरी
maani lafzon ke piri mein kuchh shabab mein kuchh

ग़ज़ल

मआनी लफ़्ज़ों के पीरी में कुछ शबाब में कुछ

ओम कृष्ण राहत

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मआनी लफ़्ज़ों के पीरी में कुछ शबाब में कुछ
और उस के बारे में लिक्खा नहीं किताब में कुछ

पहुँच के देखा तो माँगे की रौशनी के सिवा
फ़लक के तारों में कुछ है न माहताब में कुछ

हर एक घूँट में यकसाँ नहीं थी तल्ख़ी-ए-मय
कि घोल देते हैं हालात भी शराब में कुछ

कई गुनाहों का इंदिराज ही नहीं मिलता
किसी से भूल हुई है मिरे हिसाब में कुछ

है तेरा अक्स कि मेरे ग़मों का साया है
नज़र तो आता है पैमाना-ए-शराब में कुछ