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मआल-ए-इशक़-ओ-मुहब्बत से आश्ना तो नहीं | शाही शायरी
maal-e-ishq-o-mohabbat se aashna to nahin

ग़ज़ल

मआल-ए-इशक़-ओ-मुहब्बत से आश्ना तो नहीं

सय्यद आशूर काज़मी

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मआल-ए-इशक़-ओ-मुहब्बत से आश्ना तो नहीं
कहीं ये ग़म भी तिरी तरह बेवफ़ा तो नहीं

सफ़ीने वालो चलो आज दिल की बात कहें
उठो ख़ुदा के लिए नाख़ुदा ख़ुदा तो नहीं

ये और बात है माहौल साज़गार न हो
शिकस्ता बरबत-ए-एहसास बे-सदा तो नहीं

बजा कि मेरी तबाही में उन का हाथ नहीं
मगर ये गर्दिश-ए-दौराँ का हौसला तो नहीं

जुमूद-ए-सेहन-ए-चमन इंक़लाब-ए-नौ की दलील
शुऊर-ए-ग़ैरत-ए-अहल-ए-चमन मरा तो नहीं

सर-ए-नियाज़ झुका है ज़े-राह-ए-ज़ौक़-ए-सुजूद
तिरे करम की क़सम कोई मुद्दआ तो नहीं