लूटा है मुझे उस की हर अदा ने
अंदाज़ ने नाज़ ने हया ने
दोनों ने किया है मुझ को रुस्वा
कुछ दर्द ने और कुछ दवा ने
बेजा है तिरी जफ़ा का शिकवा
मारा मुझ को मिरी वफ़ा ने
पोशीदा नहीं तुम्हारी चालें
कुछ मुझ से कहा है नक़्श-ए-पा ने
क्यूँ जौर-कशान-ए-आसमाँ से
मुँह फेर लिया तिरी जफ़ा ने
दिल को मायूस कर दिया है
बेगाना मिज़ाज-आश्ना ने
दोनों ने बढ़ाई रौनक़-ए-हुस्न
शोख़ी ने कभी कभी हया ने
ख़ुश पाते हैं मुझ को दोस्त 'वहशत'
दिल का अहवाल कौन जाने
ग़ज़ल
लूटा है मुझे उस की हर अदा ने
वहशत रज़ा अली कलकत्वी