लुटी बहार का सूखा गुलाब रहने दो
हमारी आँखों में कोई तो ख़्वाब रहने दो
नए सिरे से चलो कोई अहद करते हैं
वफ़ा जफ़ा का पुराना हिसाब रहने दो
तमाम-उम्र गुज़ारी है इन दयारों में
ख़ुलूस होगा यहाँ दस्तियाब रहने दो
ख़ुमार उतरा नहीं है अभी तो अश्कों का
अभी ये साग़र-ओ-मीना शराब रहने दो
उठाए फिरते हो क्या शहर-ए-बे-बसीरत में
किसे दिखाओगे दिल की किताब रहने दो
अभी तो हम पे पुराने ही क़र्ज़ बाक़ी हैं
सवाल कर के न कहिए जवाब रहने दो
गिरा ज़रूर है लेकिन मिरा नहीं 'असलम'
तकल्लुफ़ात मुरव्वत जनाब रहने दो
ग़ज़ल
लुटी बहार का सूखा गुलाब रहने दो
असलम हबीब