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लुत्फ़ ज़िंदगानी का शौक़-ए-आरज़ू में है | शाही शायरी
lutf zindagani ka shauq-e-arzu mein hai

ग़ज़ल

लुत्फ़ ज़िंदगानी का शौक़-ए-आरज़ू में है

जामी रुदौलवी

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लुत्फ़ ज़िंदगानी का शौक़-ए-आरज़ू में है
जज़्बा-ओ-जुनूँ में है सई-ओ-जुस्तुजू में है

जो सुकून-ए-ख़ातिर है उस के ऐब में दिलकश
चाशनी है लुक्नत है सेहर गुफ़्तुगू में है

उस के क़ुर्ब की लज़्ज़त मुझ से क्या बयाँ होगी
बे-पनाह कैफ़िय्यत सिर्फ़ आरज़ू में है

ज़हर ज़िंदगानी का पी के अक़्ल आई है
दारू-ए-ग़म-ए-हस्ती तलख़ी-ए-सुबू में है

भीड़ में ज़माने की हम सदा अकेले थे
वो भी दूर है कितना जो रग-ए-गुलू में है

बात 'जामी'-साहिब की तल्ख़ भी है शीरीं भी
दर्द हल्का हल्का सा तर्ज़-ए-गुफ़्तुगू में है