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लुत्फ़ रहेगा हम-नशीं ज़ाहिद बा-वज़ू भी है | शाही शायरी
lutf rahega ham-nashin zahid ba-wazu bhi hai

ग़ज़ल

लुत्फ़ रहेगा हम-नशीं ज़ाहिद बा-वज़ू भी है

प्रेम शंकर गोयला फ़रहत

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लुत्फ़ रहेगा हम-नशीं ज़ाहिद बा-वज़ू भी है
आज घटा के दोश पर साज़ भी है सुबू भी है

पेश-ए-निगाह-ए-मुज़्तरिब हासिल-ए-जुस्तुजू भी है
या'नी वो शोख़ माइल-ए-पुर्सिश-ए-आरज़ू भी है

इत्र-फ़शाँ शमीम-ए-गुल बाद-ए-सबा लतीफ़-तर
ताज़ा-कुन मशाम-ए-जाँ गेसू-ए-मुश्क-बू भी है

चंग ब-दस्त नय-ब-लब मुतरिब-ए-दिल-नवाज़ भी
गर्म-नवा चमन चमन ताइर-ए-ख़ुश-गुलू भी है

तुझ पे ये राज़ मुन्कशिफ़ ज़ाहिद-ए-ख़ुल्द-जू कहाँ
हासिल-ए-जन्नत-नज़र आलम-ए-रंग-ओ-बू भी है