EN اردو
लुत्फ़ का रब्त है कोई न जफ़ा का रिश्ता | शाही शायरी
lutf ka rabt hai koi na jafa ka rishta

ग़ज़ल

लुत्फ़ का रब्त है कोई न जफ़ा का रिश्ता

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

;

लुत्फ़ का रब्त है कोई न जफ़ा का रिश्ता
दिल से कुछ दूर है ज़ालिम की अना का रिश्ता

दस्त-ए-ईसा भी वही बाज़ू-ए-क़ातिल भी वही
कितना नाज़ुक है चराग़ों से हवा का रिश्ता

जब्र-ए-हालात कहो ग़म की मुकाफ़ात कहो
टूट भी जाता है होंटों से नवा का रिश्ता

सोचिए तो सभी अपने हैं कोई ग़ैर नहीं
हाकिम-ए-शहर से है जुर्म-ओ-सज़ा का रिश्ता

मंज़र-ए-ज़ीस्त में कुछ रंग तो भर देता है
ख़ार-ज़ारों से किसी आबला-पा का रिश्ता

फूल नायाब सही ज़ख़्म तो नायाब नहीं
आज भी दिल से वही आब-ओ-हवा का रिश्ता

क्या करें रस्म-ए-ज़माना की शिकायत 'ताबाँ'
दर्द से रखते हैं हम लोग सदा का रिश्ता