लुत्फ़ फ़रमा सको तो आ जाओ
आज भी आ सको तो आ जाओ
अपनी वुसअ'त में खो चुका हूँ मैं
राह दिखला सको तो आ जाओ
अब वो दिल ही नहीं वो ग़म ही नहीं
आरज़ू ला सको तो आ जाओ
ग़म-गुसारो बहुत उदास हूँ मैं
आज बहला सको तो आ जाओ
फ़ुर्सत-ए-नामा-ओ-पयाम कहाँ
अब तुम ही आ सको तो आ जाओ
वो रही 'सैफ़' मंज़िल-ए-हस्ती
दो क़दम आ सको तो आ जाओ
ग़ज़ल
लुत्फ़ फ़रमा सको तो आ जाओ
सैफ़ुद्दीन सैफ़