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लोग कहते हैं कि सूरज में अँधेरा क्यूँ है | शाही शायरी
log kahte hain ki suraj mein andhera kyun hai

ग़ज़ल

लोग कहते हैं कि सूरज में अँधेरा क्यूँ है

हसीर नूरी

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लोग कहते हैं कि सूरज में अँधेरा क्यूँ है
धूप निकली है ग़लत बात का चर्चा क्यूँ है

ज़िंदगी से नहीं जब तुम को कोई दिलचस्पी
चंद लम्हों की मसर्रत का तक़ाज़ा क्यूँ है

पढ़ने वालों के दिलों पर हो सदाक़त का असर
ऐसी तहरीर वो लिखता है तो लिखता क्यूँ है

अपने मरकज़ पे जिसे लौट कर आना ही पड़ा
देख कर आइना अब चेहरा छुपता क्यूँ है

डर रहा हूँ कि मुसीबत न कहीं आ जाए
ज़ेहन में तेज़ी से एहसास ये उभरा क्यूँ है

मुझ से नफ़रत है तो इज़हार कभी भी न किया
वो फ़रिश्ता है तो कुछ कहने से डरता क्यूँ है

याद होगी तुम्हें पहले की हर इक बात 'हसीर'
फिर मोहब्बत से उसे तुम ने नवाज़ा क्यूँ है