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लोग भूके हैं बहुत और निवाले कम हैं | शाही शायरी
log bhuke hain bahut aur niwale kam hain

ग़ज़ल

लोग भूके हैं बहुत और निवाले कम हैं

बलवान सिंह आज़र

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लोग भूके हैं बहुत और निवाले कम हैं
ज़िंदगी तेरे चराग़ों में उजाले कम हैं

बद-सुलूकी भी निकल आई है ज़िंदानों से
बद-ज़बानों की ज़बानों पे भी ताले कम हैं

मय-कशी के लिए नायाब हैं जो सदियों से
चश्म-ए-साक़ी ने वही जाम उछाले कम हैं

तू ने बुज़दिल तो बनाए हैं बहुत से लेकिन
मिरे मालिक तिरी दुनिया में जियाले कम हैं

राह-ए-पुर-ख़ार से डरता है अभी तू 'आज़र'
ऐसा लगता है तेरे पावँ में छाले कम हैं