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लिया जो उस की निगाहों ने जाएज़ा मेरा | शाही शायरी
liya jo uski nigahon ne jaeza mera

ग़ज़ल

लिया जो उस की निगाहों ने जाएज़ा मेरा

मुज़फ़्फ़र वारसी

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लिया जो उस की निगाहों ने जाएज़ा मेरा
तो टूट टूट गया ख़ुद से राब्ता मेरा

समाअ'तों में ये कैसी मिठास घुलती रही
तमाम उम्र रहा तल्ख़ ज़ाइक़ा मेरा

चटख़ गया हूँ मैं अपने ही हाथ से गिर कर
मिरे ही अक्स ने तोड़ा है आइना मेरा

किया गया था कभी मुझ को संगसार जहाँ
वहीं लगाया गया है मुजस्समा मेरा

जभी तो उम्र से अपनी ज़ियादा लगता हूँ
बड़ा है मुझ से कई साल तजरबा मेरा

अदावतों ने मुझे ए'तिमाद बख़्शा है
मोहब्बतों ने तो काटा है रास्ता मेरा

मैं अपने घर में हूँ घर से गए हुओं की तरह
मिरे ही सामने होता है तज़्किरा मेरा

मैं लुट गया हूँ 'मुज़फ़्फ़र' हयात के हाथों
सुनेगी किस की अदालत मुक़द्दमा मेरा