EN اردو
लिखे हुए अल्फ़ाज़ में तासीर नहीं है | शाही शायरी
likhe hue alfaz mein tasir nahin hai

ग़ज़ल

लिखे हुए अल्फ़ाज़ में तासीर नहीं है

शाइस्ता मुफ़्ती

;

लिखे हुए अल्फ़ाज़ में तासीर नहीं है
दिल पर जो किसी इश्क़ की तहरीर नहीं है

इस ज़ीस्त के हर मोड़ पे लड़नी है मुझे जंग
क़िर्तास ओ क़लम हैं कोई शमशीर नहीं है

मुमकिन ही नहीं था तुझे आवाज़ लगाते
है इश्क़ की रूदाद प तश्हीर नहीं है

दुनिया में वफ़ा ढूँडने निकले थे नदारद
इक बोझ है दिल पर मिरे शहतीर नहीं है

लम्हे में पलट देंगे ज़माने को तुम्हारे
है अहद-ए-हुनर जान ये तस्ख़ीर नहीं है

पैवस्त हैं इस घर से बहुत आप की यादें
गुज़रे हुए लम्हात हैं ज़ंजीर नहीं है

चुप-चाप बहुत देर से फिरते हैं गुरेज़ाँ
दुनिया में कोई आप सा दिल-गीर नहीं है