EN اردو
लिखा जो अश्क से तहरीर में नहीं आया | शाही शायरी
likha jo ashk se tahrir mein nahin aaya

ग़ज़ल

लिखा जो अश्क से तहरीर में नहीं आया

सिया सचदेव

;

लिखा जो अश्क से तहरीर में नहीं आया
वो दर्द लफ़्ज़ की तफ़्सीर में नहीं आया

अभी कुछ और जकड़ दुश्मनी की बंदिश में
लहू का ज़ाइक़ा ज़ंजीर में नहीं आया

हो दर्द हल्का तो झूटी ख़ुशी भी मिल जाए
इक ऐसा लम्हा भी तक़दीर में नहीं आया

किसी के हिज्र ने मुफ़्लिस बना दिया शायद
पलट के अपनी वो जागीर में नहीं आया

वो मेरी आँखों पे क़ाबिज़ रहा 'सिया' लेकिन
किसी भी ख़्वाब की ताबीर में नहीं आया