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लेने लगे जो चुटकी यक-बार बैठे बैठे | शाही शायरी
lene lage jo chuTki yak-bar baiThe baiThe

ग़ज़ल

लेने लगे जो चुटकी यक-बार बैठे बैठे

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

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लेने लगे जो चुटकी यक-बार बैठे बैठे
ये छेड़ क्या निकाली ऐ यार बैठे बैठे

कल वाअदा-गाह में जब वो बेवफ़ा न आया
उकता के उठ गए हम नाचार बैठे बैठे

जो कुछ पढ़ा है हम ने हम आफी-आप उस की
घर में किया करें हैं तकरार बैठे बैठे

हम ने तो उस को हरगिज़ यारो कहा न था कुछ
कुछ यूँही हो गया वो बेज़ार बैठे बैठे

तुझ बिन तो हम ने वे भी बा-ख़ामशी अदा कीं
याद आईआं जो बातें दो-चार बैठे बैठे

ऐ 'मुसहफ़ी' उन्हीं में सनअत नहीं कुछ अपनी
लिख डाले हम ने कल ये अशआर बैठे बैठे