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ले उड़े गेसू परेशानी मिरी | शाही शायरी
le uDe gesu pareshani meri

ग़ज़ल

ले उड़े गेसू परेशानी मिरी

रियाज़ ख़ैराबादी

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ले उड़े गेसू परेशानी मिरी
आइने ले भागे हैरानी मिरी

कह उठा जोबन कि बस बस हो चुकी
नीची नज़रों से निगहबानी मिरी

बाम पर कह आए जा कर आह-ए-गर्म
बढ़ के बिजली से है जौलानी मिरी

गेसुओं से उन के अच्छी ग़म की रात
मैं फ़िदा उस पर वो दीवानी मिरी

प्यारे प्यारे मुँह से फिर कह दे ज़रा
हो मुबारक तुझ को मेहमानी मिरी

साथ मेरे दिल भी मिट्टी हो चुका
तेरे सदक़े ख़ाक क्यूँ छानी मिरी

इतनी मुद्दत में बिछड़ कर दिल मिला
देर तक सूरत न पहचानी मिरी

थक गए वो रुक गया ख़ंजर 'रियाज़'
अब बड़ी मुश्किल है आसानी मिरी