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ले के फिर ज़ख़्मों की सौग़ात बहारो आओ | शाही शायरी
le ke phir zaKHmon ki saughat bahaaro aao

ग़ज़ल

ले के फिर ज़ख़्मों की सौग़ात बहारो आओ

अहमद शाहिद ख़ाँ

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ले के फिर ज़ख़्मों की सौग़ात बहारो आओ
चश्म-ए-पुर-नम के मुक़ाबिल तो फुहारो आओ

चंद तिनकों का जलाना तो बड़ी बात नहीं
अज़्म को मेरे जलाओ तो शरारो आओ

ग़म का सैलाब ग़ज़ब दिल की शिकस्ता कश्ती
मौज के साथ ही यादों के किनारो आओ

तकते रहते हो किसे दूर से हैरानी से
दिल के सहरा में कभी चाँद सितारो आओ

आमद-ए-यार हो हर सम्त कँवल खुलते हूँ
ख़्वाब में ही कभी रंगीन नज़ारो आओ