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ले चला फिर मुझे दिल यार-ए-दिल-आज़ार के पास | शाही शायरी
le chala phir mujhe dil yar-e-dil-azar ke pas

ग़ज़ल

ले चला फिर मुझे दिल यार-ए-दिल-आज़ार के पास

मुबारक अज़ीमाबादी

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ले चला फिर मुझे दिल यार-ए-दिल-आज़ार के पास
अब के छोड़ आऊँगा ज़ालिम को सितमगार के पास

मैं तो हर हर ख़म-ए-गेसू की तलाशी लूँगा
कि मिरा दिल है तिरे गेसू-ए-ख़मदार के पास

तू तो एहसान जताती हुई आती है सबा
यूँ भी आता है कोई मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार के पास