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लज़्ज़त-ए-ग़म बढ़ा दीजिए | शाही शायरी
lazzat-e-gham baDha dijiye

ग़ज़ल

लज़्ज़त-ए-ग़म बढ़ा दीजिए

राज़ इलाहाबादी

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लज़्ज़त-ए-ग़म बढ़ा दीजिए
आप फिर मुस्कुरा दीजिए

चाँद कब तक गहन में रहे
अब तो ज़ुल्फ़ें हटा दीजिए

मेरा दामन बहुत साफ़ है
कोई तोहमत लगा दीजिए

क़ीमत-ए-दिल बता दीजिए
ख़ाक ले कर उड़ा दीजिए

आप अँधेरे में कब तक रहें
फिर कोई घर जला दीजिए

इक समुंदर ने आवाज़ दी
मुझ को पानी पिला दीजिए