EN اردو
लम्हा-दर-लम्हा तिरी राह तका करती है | शाही शायरी
lamha-dar-lamha teri rah taka karti hai

ग़ज़ल

लम्हा-दर-लम्हा तिरी राह तका करती है

अब्बास क़मर

;

लम्हा-दर-लम्हा तिरी राह तका करती है
एक खिड़की तिरी आमद की दुआ करती है

सिलवटें चीख़ती रहती हैं मिरे बिस्तर की
करवटों में ही मिरी रात कटा करती है

वक़्त थम जाता है अब रात गुज़रती ही नहीं
जाने दीवार-घड़ी रात में क्या करती है

चाँद खिड़की में जो आता था नहीं आता अब
तीरगी चारों तरफ़ रक़्स किया करती है

मेरे कमरे में उदासी है क़यामत की मगर
एक तस्वीर पुरानी सी हँसा करती है