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लहू आँखों में जमता जा रहा है | शाही शायरी
lahu aankhon mein jamta ja raha hai

ग़ज़ल

लहू आँखों में जमता जा रहा है

पवन कुमार

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लहू आँखों में जमता जा रहा है
ये दरिया ख़ुश्क पड़ता जा रहा है

जिसे सदियों की वुसअ'त है मयस्सर
वो लम्हों में सिमटता जा रहा है

जिसे दिल में उतरना चाहिए था
वही दिल से उतरता जा रहा है

सफ़ीना फिर से कोई ज़िद के चलते
हवाओं से उलझता जा रहा है

तमाशा-गर तो हैं मौजूद लेकिन
ये मजमा' क्यूँ उखड़ता जा रहा है

तुम्हारा अक्स है या कोई जादू
हर आईना सँवरता जा रहा है