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लहकती लहरों में जाँ है किनारे ज़िंदा हैं | शाही शायरी
lahakti lahron mein jaan hai kinare zinda hain

ग़ज़ल

लहकती लहरों में जाँ है किनारे ज़िंदा हैं

राम रियाज़

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लहकती लहरों में जाँ है किनारे ज़िंदा हैं
वजूद-ए-आब के सब इस्तिआरे ज़िंदा हैं

वो हिजरतों की हिकायत तुम्हें सुनाएँगे
जिन्हों ने सर से ये तूफ़ाँ गुज़ारे ज़िंदा हैं

हमारे कर्ब किताबों में हैं अभी महफ़ूज़
वो सारे सफ़्हे वो सब गोश्वारे ज़िंदा हैं

अज़ल से जब्र ओ सदाक़त की जंग जारी है
अभी तलक नहीं मज़लूम हारे ज़िंदा हैं

मजालिस-ए-सितम-ईजाद का निशान नहीं
मोहब्बतों के अभी तक इदारे ज़िंदा हैं

जो तेरे ग़म में जले हैं वो फिर बुझे ही नहीं
जब इन की राख कुरेदो शरारे ज़िंदा हैं

अभी तुम्हारे तड़पने के दिन नहीं आए
अभी तो ख़ैर से ख़ादिम तुम्हारे ज़िंदा हैं

हम अपने जीने का अब क्या जवाज़ पेश करें
कि अब न हम न ज़माने हमारे ज़िंदा हैं

हर एक शख़्स को इस बात का शुऊर नहीं
जो 'राम' हक़ पे मरे हैं वो सारे ज़िंदा हैं