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लग़्ज़िश पा-ए-होश का हर्फ़-ए-जवाज़ ले के हम | शाही शायरी
laghzish pa-e-hosh ka harf-e-jawaz le ke hum

ग़ज़ल

लग़्ज़िश पा-ए-होश का हर्फ़-ए-जवाज़ ले के हम

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

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लग़्ज़िश पा-ए-होश का हर्फ़-ए-जवाज़ ले के हम
ख़ुद को समझने आए हैं रूह-ए-मजाज़ ले के हम

कर्ब के एक लम्हे में लाख बरस गुज़र गए
मालिक-ए-हश्र क्या करें उम्र-ए-दराज़ ले के हम

शाम की धुँदली छाँव में फैले हैं साए दार के
सज्दा करें कि आए हैं ज़ौक़-ए-नमाज़ ले के हम

दूर उफ़ुक़ पे जा कहीं दोनों लकीरें मिल गईं
आए तो थे हुज़ूर-ए-दिल नाज़-ओ-नियाज़ ले के हम

रात ढली है चाँद गुम दूर जले हैं दो दिए
राज़ तो है प किस के पास जाएँ ये राज़ ले के हम

रक़्स-ए-शरर में खो गए बर्क़ के दिल से मिल गए
लाला-ओ-गुल में खिल गए मौत का राज़ ले के हम

रू-ए-सुख़न बदल गया बढ़ने लगे हैं फ़ासले
आह-ए-सुकूत मुंजमिद बैठे हैं साज़ ले के हम