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लगता है वो आज ख़्वाब जैसा | शाही शायरी
lagta hai wo aaj KHwab jaisa

ग़ज़ल

लगता है वो आज ख़्वाब जैसा

सलीम शहज़ाद

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लगता है वो आज ख़्वाब जैसा
इक शख़्स खुली किताब जैसा

क्या इस में है मौज-ए-आब जैसा
बे-लम्स है वो सराब जैसा

हर शख़्स पे साँप रेंगता है
है ज़ोर-ए-हवस अज़ाब जैसा

हर शख़्स को रंज-ए-ना-तमामी
क़िस्से के अधूरे बाब जैसा

बातों में है उस की ज़हर थोड़ा
थोड़ा सा मज़ा शराब जैसा

मैं अक्स हूँ और आईना वो
रिश्ता है सराब ओ आब जैसा