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लगे जब सुबह की कश्ती किनारे शब | शाही शायरी
lage jab subah ki kashti kinare shab

ग़ज़ल

लगे जब सुबह की कश्ती किनारे शब

अलमास शबी

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लगे जब सुबह की कश्ती किनारे शब
किया करती है जाने क्या इशारे शब

नहीं शिकवा मगर इतना बता दो तुम
कोई तुम बिन भला कैसे गुज़ारे शब

छुड़ा कर हाथ दुनिया से मिरी ख़ातिर
चले आओ जहाँ हो तुम पुकारे शब

ज़रा सोचो ये किस के वास्ते अपने
लिए फिरती है दामन में सितारे शब

उठा के रंज-ओ-ग़म सारे ज़माने के
मिरे दिल पे न जाने क्यूँ उतारे शब