लगा लिया था गले उस ने बा-वफ़ा कह कर
हमीं ने टाल दिया हर्फ़-ए-आश्ना कह कर
कफ़-ए-तलब पे कभी तो मिरे हुज़ूर लिखो
हिना के नक़्श को तहरीर-ए-ख़ूँ-बहा कह कर
कुछ ऐसी शक्ल मुझे रू-ब-रू दिखाई दी
नज़र पलट गई आईना-ए-रिया कह कर
उड़ा के ले गई मौज-ए-सबा न जाने कहाँ
तुम्हारे जिस्म की ख़ुशबू को आश्ना कह कर
फ़सील-ए-वक़्त से आज़ाद हो के मेरी ज़बाँ
क़ुबूल-ए-आम हुई दश्त की सदा कह कर
थीं जिन में दफ़्न हज़ारों क़दम की आवाज़ें
मिटा दिया तिरे तलवे ने नक़्श-ए-पा कह कर
मैं अपनी वज़्अ पे क़ाएम रहूँ 'शकेब'-अयाज़
वो अपनी प्यास बुझाए बुरा-भला कह कर
ग़ज़ल
लगा लिया था गले उस ने बा-वफ़ा कह कर
शकेब अयाज़