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लगा के दिल कोई कुछ पल अमीर रहता है | शाही शायरी
laga ke dil koi kuchh pal amir rahta hai

ग़ज़ल

लगा के दिल कोई कुछ पल अमीर रहता है

अनीस अब्र

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लगा के दिल कोई कुछ पल अमीर रहता है
फिर इक उम्र वो ग़म में असीर रहता है

क्यूँ हाथ दिल से लगाते हो बार बार अपना
क्या दिल में अब भी कोई बे-नज़ीर रहता है

तिरी ज़बाँ पे क़नाअत की बात ठीक नहीं
तिरे बदन पे लिबास-ए-हरीर रहता है

यक़ीन आ गया इन मेहरबाँ हवाओं से
उसी गली में मिरा दस्त-गीर रहता है

तिरे फ़िराक़ का ग़म वो है कि दिलासे को
ता-सुब्ह बाम पे माह-ए-मुनीर रहता है

फिर अहल-ए-इश्क़ की तख़्लीक़ होती है पहले
जुनूँ की आग में बरसों ख़मीर रहता है