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लगा कर इश्क़ का कजरा नयन को | शाही शायरी
laga kar ishq ka kajra nayan ko

ग़ज़ल

लगा कर इश्क़ का कजरा नयन को

अलीमुल्लाह

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लगा कर इश्क़ का कजरा नयन को
दिखाऊँ याँ सेती हुब्बुलवतन को

बज़ाँ ले जाऊँ हर लहज़े में इक बार
कि जब लग रूह सूँ रिश्ता है तन को

रहे आलम में उस का सैर और तैर
न देखे उस के कुइ मस्ताने-पन को

चमन सूँ दिल के आलम को ख़बर नहिं
हमेशा देखते ख़ाकी बदन को

कर आऊँ सैर दिल के बोस्ताँ का
न जावे वो कभी हरगिज़ चमन को

दिखाऊँ यार के ज़ुल्फ़ाँ सूँ यक तार
न चाहे फिर कभी मुश्क-ए-ख़ुतन को

न था आदम अथा वो ज़ात-ए-मुतलक़
सुनाऊँ ये सदा अब तुझ किरन को

सदफ़ में नैन के दिखलाऊँ गौहर
न राखे आरज़ू दुर्र-ए-अदन को

नहीं गौहर वो हैं ज्यूँ चाँद और सूर
'अलीमुल्लाह' जहाँ के अंजुमन को