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लगा हो दिल तो ख़यालात कब बदलते हैं | शाही शायरी
laga ho dil to KHayalat kab badalte hain

ग़ज़ल

लगा हो दिल तो ख़यालात कब बदलते हैं

अशफ़ाक़ आमिर

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लगा हो दिल तो ख़यालात कब बदलते हैं
ये इंक़लाब तो इक बे-दिली में पलते हैं

निकल चुके हैं बहुत दूर क़ाफ़िले वाले
हमें ख़बर नहीं हम किस के साथ चलते हैं

कभी हमें भी मिलाओ तो ऐसे लोगों से
कि जिन की आँख में अब तक चराग़ जलते हैं

ये रात ऐसी हवाएँ कहाँ से लाती है
कि ख़्वाब फूलते हैं और ज़ख़्म फलते हैं

रुतों ने अपने क़रीने बदल लिए लेकिन
हमारे तौर वही हैं नहीं बदलते हैं

अब ए'तिबार पे जी चाहता तो है लेकिन
पुराने ख़ौफ़ दिलों से कहाँ निकलते हैं