लगा दे सोज़-ए-मोहब्बत फिर आग सीने में
मज़ा फिर आने लगे दिल-जलों को जीने में
ब-ख़ैर गुज़रें ये दो दिन बहार के या-रब
कि रोक टोक बहुत हो रही है पीने में
खटक रही है कोई शय निकाल दे कोई
तड़प रहा है दिल-ए-बे-क़रार सीने में
चमक रही है ये बिजली गिरेगी तौबा पर
झलक रही है मय-ए-लाला-फ़ाम मीने में
ये ख़ास वक़्तों के कुछ नाला-हा-ए-मौज़ूँ हैं
हमारे शेर 'मुबारक' नहीं सफ़ीने में

ग़ज़ल
लगा दे सोज़-ए-मोहब्बत फिर आग सीने में
मुबारक अज़ीमाबादी